BCOC 136 assignment in hindi,BcomG 2nd year IGNOU
Bcoc 136
![]() |
BcomG, assignment |
1. आकस्मिक आय से आप क्या समझते हैं? आयकर कानून के अंतर्गत प्रावधानों का वर्णन कीजिए ।
अक्षमिक आय
अक्षमिक आय वह आय होती है जो किसी विशेष घटना या अनियमित स्त्रोत से उत्पन्न होती है और नियमित आय का हिस्सा नहीं होती। इसे आमतौर पर असाधारण या आकस्मिक आय भी कहा जाता है। इसका मुख्य उदाहरण लॉटरी जीतना, पुरस्कार प्राप्त करना, एकमुश्त बोनस, या किसी अनपेक्षित स्रोत से धन का प्राप्त होना है। यह ऐसी आय है जो व्यक्ति को बार-बार नहीं मिलती, बल्कि एक विशेष परिस्थिति में ही उत्पन्न होती है। अक्षमिक आय के कई रूप हो सकते हैं, जैसे लॉटरी, घुड़दौड़, टी.वी. गेम शो या प्रतियोगिता से प्राप्त धनराशि। यह आय व्यक्ति की मूल आय से भिन्न होती है क्योंकि इसका नियमित रूप से उत्पन्न होने की संभावना नहीं होती।
आयकर कानून में अक्षमिक आय का महत्व
भारत में आयकर कानून के अंतर्गत अक्षमिक आय पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस तरह की आय पर कर का प्रावधान है ताकि आय के किसी भी प्रकार को कराधान से बाहर न रखा जाए। आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार, अक्षमिक आय पर आयकर लागू होता है, और इसका कर निर्धारण नियमित आय से अलग होता है। इस प्रकार की आय पर अधिक दर से कर लगाया जाता है क्योंकि इसे एक असाधारण लाभ माना जाता है, और इस पर कर की दरें सामान्य आय से अधिक होती हैं। उदाहरणस्वरूप, लॉटरी से प्राप्त धन पर 30% की दर से कर लगाया जाता है, साथ ही शेष अधिभार और उपकर भी लागू होते हैं।
इसके अलावा, आयकर अधिनियम की धारा 115BB के तहत, अक्षमिक आय को एक विशेष श्रेणी के अंतर्गत रखा गया है ताकि इस प्रकार की आय पर स्पष्ट कराधान हो सके। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी असाधारण आय कराधान से मुक्त न रहे और सरकार को इससे राजस्व प्राप्त हो सके।
2. श्री विकास को 4,000 रु. पेंशन मिल रही है। पिछले वर्ष, उन्होंने दो-तिहाई पेंशन एकमुश्त करवाई और रु. 1,86,000 प्राप्त किए, पेंशन की कर मुक्त राशि की गणना कीजिए, कर निर्धारण वर्ष 2022-23 के लिए यदि (क) उसे ग्रेच्युटी भी प्राप्त हुई (ख) उसे ग्रेच्युटी प्राप्त नहीं है।
पेंशन की कर मुक्त राशि की गणना के लिए, दो स्थितियाँ हैं: (क) जब ग्रेच्युटी प्राप्त हुई हो और (ख) जब ग्रेच्युटी प्राप्त नहीं हुई हो। हम दोनों स्थितियों के लिए अलग-अलग गणना करेंगे:
(क) जब श्री विकास को ग्रेच्युटी प्राप्त हुई हो:
नियमों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को ग्रेच्युटी प्राप्त हुई हो, तो एकमुश्त पेंशन की कर मुक्त राशि निम्न में से कम होती है:
1. एकमुश्त पेंशन का एक-तिहाई (1/3)
2. रु. 1,00,000
श्री विकास ने 1,86,000 रुपये एकमुश्त प्राप्त किए हैं।
1. एक-तिहाई (1/3) पेंशन:
1,86,000 \times \frac{1}{3} = 62,000 \text{ रुपये}
इसलिए, कर मुक्त राशि 62,000 रुपये होगी, क्योंकि यह 1,00,000 रुपये से कम है।
(ख) जब श्री विकास को ग्रेच्युटी प्राप्त नहीं हुई हो:
यदि ग्रेच्युटी प्राप्त नहीं हुई हो, तो एकमुश्त पेंशन की कर मुक्त राशि निम्न में से कम होती है:
1. एकमुश्त पेंशन का आधा (1/2)
2. रु. 1,00,000
1. आधा (1/2) पेंशन:
1,86,000 \times \frac{1}{2} = 93,000 \text{ रुपये}
इसलिए, कर मुक्त राशि 93,000 रुपये होगी, क्योंकि यह 1,00,000 रुपये से कम है।
निष्कर्ष:
(क) ग्रेच्युटी प्राप्त होने पर कर मुक्त राशि = 62,000 रुपये।
(ख) ग्रेच्युटी प्राप्त न होने पर कर मुक्त राशि = 93,000 रुपये।
3.
गत वर्ष 2021-22 के लिए एक्स लिमिटेड के परिवार नियोजन के व्ययों की स्वीकृति के पहले की आय रु. 3,00,000 है कम्पनी ने गत वर्ष 2021 22 में परिवार नियोजन पर कर्मचारियों के ऊपर निम्न व्यय किए।
1) परिवार नियोजन पर आयगत व्यय 1,65,000
2) परिवार नियोजन पर पूंजीगत व्यय
क) कंपनी के परिवार नियोजन के व्यय की कटौती की गणना यह मानकर कीजिए कि कंपनी की अन्य स्रोतों से आय रु. 30,000 थी।
ख) आपका उत्तर क्या होगा यदि परिवार नियोजन के आयगत व्यय रु. 1,65,000 के स्थान पर रु. 2,30,000 है।
इस प्रश्न में, हमें कंपनी के परिवार नियोजन के व्ययों के लिए आयकर अधिनियम के अनुसार कटौती की गणना करनी है। दो हिस्सों में विभाजित जानकारी दी गई है:
1. परिवार नियोजन पर आयगत व्यय
2. परिवार नियोजन पर पूंजीगत व्यय
(क) परिवार नियोजन के व्यय की कटौती की गणना (आयगत व्यय रु. 1,65,000):
1. आयगत व्यय की कटौती:
आयकर अधिनियम के अनुसार, कंपनी को परिवार नियोजन पर किए गए आयगत व्यय की पूरी कटौती मिलती है।
आयगत व्यय = रु. 1,65,000
इसलिए, इस व्यय की पूरी कटौती मिलेगी = रु. 1,65,000
2. पूंजीगत व्यय की कटौती:
परिवार नियोजन पर किए गए पूंजीगत व्यय की कटौती के लिए, कंपनी को कुल पूंजीगत व्यय का 1/5 हिस्सा (5 वर्षों में) प्रत्येक वर्ष के लिए काटने की अनुमति होती है।
अगर हमें पूंजीगत व्यय का कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया गया है, तो हम मान सकते हैं कि यह कटौती इस साल के लिए लागू नहीं है।
3. अन्य स्रोतों से आय:
कंपनी की अन्य स्रोतों से आय = रु. 30,000
कुल आय की गणना:
स्वीकृति के पहले की आय = रु. 3,00,000 (ध्यान दें, यहाँ आय नकारात्मक है, इसलिए यह घाटा दिखाता है)
परिवार नियोजन पर आयगत व्यय की कटौती = रु. 1,65,000
अन्य स्रोतों से आय = रु. 30,000
कुल आय (ध्यान दें कि स्वीकृति के पहले की आय घाटे में है):
(3,00,000) + 30,000 = (2,70,000)
(2,70,000) - 1,65,000 = (4,35,000)
---
(ख) यदि आयगत व्यय रु. 2,30,000 हो:
1. आयगत व्यय की कटौती:
आयगत व्यय = रु. 2,30,000
इस व्यय की पूरी कटौती मिलेगी = रु. 2,30,000
2. पूंजीगत व्यय की कटौती:
जैसा कि पहले बताया गया है, पूंजीगत व्यय की कटौती का कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया गया है, इसलिए इसे नजरअंदाज किया जा सकता है।
3. अन्य स्रोतों से आय:
अन्य स्रोतों से आय = रु. 30,000
कुल आय की गणना:
स्वीकृति के पहले की आय = रु. (10) 3,00,000 (घाटा)
परिवार नियोजन पर आयगत व्यय की कटौती = रु. 2,30,000
अन्य स्रोतों से आय = रु. 30,000
कुल आय:
(3,00,000) + 30,000 = (2,70,000)
(2,70,000) - 2,30,000 = (5,00,000)
---
निष्कर्ष:
(क) यदि परिवार नियोजन का आयगत व्यय रु. 1,65,000 है, तो कंपनी की कुल आय = (4,35,000) घाटा।
(ख) यदि परिवार नियोजन का आयगत व्यय रु. 2,30,000 है, तो कंपनी की कुल आय = (5,00,000) घाटा।
BCOC 136 assignment in hindi,BcomG 2nd year IGNOU
4.
श्रीमती सुमन गर्ग द्वारा आय का निम्नलिखित विचरण कर निर्धारण वर्ष 2022-23 के लिए प्रस्तुत किया
गया है। वह दिल्ली में रहती है. ।) मूल वेतन 10,000 प्रतिमाह। ii) महंगाई भत्ता वेतन का 10% iii) मकान किराया भत्ता मूल वेतन का 30% iv) चिकित्सा भत्ता 200 रुपये प्रति माह। (अपने उपचार के लिए वास्तव में 2000 खर्च किये) ४) वार्डन भत्ता रु. 400 प्रतिमाह। vi) मकान सम्पत्ति से किराया रु.
3,000 प्रति माह vii) प्रमाणित प्रोविडेंट फण्ड में अंशदान, मूल वेतन का 10% viii) मकान किराया भुगतान 6,000 रु प्रति माह ix) अनुमोदित पुण्यार्थ संस्था को रु. 20,000 का दान। कर निर्धारण वर्ष
2022-23 के लिए आय की गणना कीजिए।
श्रीमती सुमन गर्ग द्वारा प्रस्तुत आय का निर्धारण कर निर्धारण वर्ष 2022-23 के लिए इस प्रकार किया जाएगा:
1. वेतन से आय:
मूल वेतन: ₹10,000 प्रतिमाह
वार्षिक: ₹10,000 × 12 = ₹1,20,000
महंगाई भत्ता: 10% × ₹1,20,000 = ₹12,000
मकान किराया भत्ता (HRA): 30% × ₹1,20,000 = ₹36,000
HRA की छूट की गणना इस प्रकार होगी:
प्राप्त HRA: ₹36,000
किराया भुगतान किया: ₹72,000 (₹6,000 × 12)
(किराया भुगतान – 10% वेतन): ₹72,000 - ₹12,000 = ₹60,000
नगर की 50% छूट: ₹60,000
तो HRA छूट होगी ₹36,000 और यह आय में जुड़ने योग्य नहीं होगी।
HRA छूट: ₹36,000, तो इसे आय में नहीं जोड़ा जाएगा।
चिकित्सा भत्ता: ₹200 × 12 = ₹2,400
चिकित्सा व्यय ₹2,000 किया गया, परंतु आयकर कानून के अनुसार ₹15,000 तक चिकित्सा भत्ता कर-मुक्त होता है। इस स्थिति में ₹2,400 पूरा कर-मुक्त होगा।
वार्डन भत्ता: ₹400 × 12 = ₹4,800
(यह पूर्ण रूप से कर योग्य है)
2. संपत्ति से आय:
मकान से किराया आय: ₹3,000 × 12 = ₹36,000
(30% छूट के बाद आय): ₹36,000 – 30% = ₹25,200
3. प्रोविडेंट फंड में योगदान:
प्रोविडेंट फंड में अंशदान: ₹1,20,000 × 10% = ₹12,000
(80C के अंतर्गत छूट)
4. पुण्यार्थ दान:
अनुमोदित पुण्यार्थ संस्था को दान: ₹20,000
(80G के अंतर्गत 50% छूट: ₹10,000)
आय की कुल गणना:
कुल आय: ₹1,32,000 + ₹4,800 + ₹25,200 - ₹12,000 - ₹10,000 = ₹1,40,000
अतः श्रीमती सुमन गर्ग की कर योग्य आय निर्धारण वर्ष 2022-23 के लिए ₹1,40,000 होगी।
BCOC 136 assignment in hindi,BcomG 2nd year IGNOU
5.
विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों पर चर्चा करें? करमुक्त व्यापारिक प्रतिमूर्ति को सकल बनाये रखने के नियमों को समझाए।
विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियाँ (Securities):
1. इक्विटी शेयर (Equity Shares):
इसे सामान्य शेयर भी कहा जाता है। यह कंपनी के स्वामित्व में अंश प्रदान करते हैं और इनके धारकों को कंपनी की लाभांश और शेयर की बढ़ती कीमत से फायदा होता है। जोखिम अधिक होता है, लेकिन संभावित रिटर्न भी उच्च होता है।
2. डिबेंचर (Debentures):
यह एक कर्ज होता है जो कंपनी द्वारा उधार लिया जाता है। डिबेंचर धारकों को नियमित ब्याज भुगतान प्राप्त होता है, लेकिन कंपनी के स्वामित्व में कोई हिस्सा नहीं होता। डिबेंचर अपेक्षाकृत कम जोखिम वाले होते हैं क्योंकि इनमें स्थिर ब्याज दर होती है।
3. सरकारी प्रतिभूतियाँ (Government Securities):
यह केंद्र या राज्य सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियाँ होती हैं, जैसे कि ट्रेजरी बिल और बांड। यह निवेश सुरक्षित होता है और इन्हें कर-मुक्त भी बनाया जा सकता है।
4. वरीयता शेयर (Preference Shares):
इन शेयरों के धारकों को पहले लाभांश मिलता है और कंपनी बंद होने पर उन्हें पहले भुगतान किया जाता है। लेकिन इनमें वोटिंग अधिकार सामान्यतः नहीं होते हैं।
5. म्युचुअल फंड (Mutual Funds):
इसमें कई निवेशकों के पैसे को इकट्ठा करके विभिन्न शेयरों, बांडों या अन्य प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है। यह एक विविधीकृत निवेश विकल्प है और कम जोखिम प्रदान करता है।
6. वायदा और विकल्प (Futures and Options):
यह वित्तीय साधन होते हैं जो भविष्य की कीमतों पर आधारित होते हैं। यह मुख्य रूप से हेजिंग और सट्टेबाजी के लिए उपयोग किया जाता है।
7. बांड (Bonds):
यह एक प्रकार का कर्जपत्र होता है, जिसमें निवेशक को कंपनी या सरकार द्वारा एक निश्चित ब्याज दर पर भुगतान किया जाता है। इसे एक निश्चित अवधि के बाद निवेशक को वापस किया जाता है।
करमुक्त व्यापारिक प्रतिमूर्ति को सकल बनाये रखने के नियम
करमुक्त व्यापारिक प्रतिमूर्ति के नियम उन व्यापारिक इकाइयों पर लागू होते हैं जो कर-मुक्त क्षेत्र में व्यापार करती हैं। इन नियमों का उद्देश्य है यह सुनिश्चित करना कि कर-मुक्त प्रतिमूर्ति का उपयोग केवल व्यापारिक उद्देश्यों के लिए हो और किसी प्रकार का कर चोरी या अनुचित लाभ न उठाया जा सके।
1. कर अनुपालन:
व्यापारिक इकाइयों को सभी संबंधित कर नियमों का पालन करना आवश्यक होता है, भले ही उनकी आय कर-मुक्त हो।
2. प्रमाणित आय:
व्यापारिक इकाइयों को अपनी आय को प्रमाणित करना आवश्यक होता है, जो कर-मुक्त आय के दायरे में आती है।
3. अनुमोदित कर-मुक्त क्षेत्र:
केवल उन इकाइयों को कर-मुक्त प्रतिमूर्ति का लाभ मिलता है, जो सरकार द्वारा अनुमोदित कर-मुक्त क्षेत्रों में व्यापार करती हैं।
4. आय का सही लेखांकन:
व्यापारिक इकाइयों को अपनी आय का सही तरीके से लेखांकन करना होगा और सभी दस्तावेज सटीक होने चाहिए।
5. लाभांश वितरण:
कर-मुक्त आय से संबंधित लाभांश वितरण पर विशेष नियम लागू हो सकते हैं, जैसे कि लाभांश कर-मुक्त हो सकता है।
6. निवेश और पुनर्निवेश:
कर-मुक्त आय का पुनर्निवेश विशेष क्षेत्रों में किया जा सकता है और इसकी अनुमति दी जा सकती है यदि वह उत्पादकता में वृद्धि करता है।
7. व्यय पर नियंत्रण:
व्यापारिक इकाइयों को अपने व्यय का लेखा-जोखा सही रखना होगा, ताकि कर-मुक्त लाभ का उपयोग अनावश्यक कार्यों के लिए न हो।
8. निरीक्षण और लेखा परीक्षा:
व्यापारिक इकाइयों को समय-समय पर निरीक्षण और लेखा परीक्षा के लिए तैयार रहना होगा ताकि कर-मुक्त प्रतिमूर्ति का दुरुपयोग न हो।
9. अपारदर्शिता की रोकथाम:
व्यापारिक इकाइयों को अपनी वित्तीय गतिविधियों में पारदर्शिता बनाए रखना आवश्यक होता है।
10. सरकारी निगरानी:
सरकार या नियामक प्राधिकरण समय-समय पर कर-मुक्त व्यापारिक इकाइयों की जांच कर सकते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कर-मुक्त प्रतिमूर्ति का सही उपयोग हो रहा है।
6.
किसी व्यक्ति को निवासी लेकिन मामूली तौर पर निवासी नहीं निर्धारित करने की प्रक्रिया समझाइए
"निवासी लेकिन मामूली तौर पर निवासी नहीं" की अवधारणा भारतीय आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत आती है। इसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि एक व्यक्ति किस प्रकार की कर स्थिति में आता है। इसे समझने के लिए, निम्नलिखित प्रक्रिया को ध्यान में रखा जाता है:
1. सामान्य निवासी और अनिवासी की परिभाषा:
निवासी (Resident): एक व्यक्ति को "निवासी" माना जाता है यदि वह भारत में किसी भी वित्तीय वर्ष में 182 दिन या उससे अधिक समय के लिए उपस्थित रहा हो। इसके अलावा, कुछ विशेष स्थितियों के तहत, यदि व्यक्ति पिछले चार वर्षों में 365 दिन या उससे अधिक समय तक भारत में रहा है और वह पिछले वित्तीय वर्ष में 60 दिनों या उससे अधिक के लिए भारत में उपस्थित रहा हो, तो उसे भी "निवासी" माना जाएगा।
अनिवासी (Non-Resident): यदि कोई व्यक्ति उपर्युक्त शर्तों को पूरा नहीं करता है, तो उसे "अनिवासी" माना जाएगा।
2. मामूली तौर पर निवासी नहीं (Not Ordinarily Resident):
यदि कोई व्यक्ति भारत में "निवासी" के रूप में अर्हता प्राप्त कर लेता है, तो यह भी जाँच की जाती है कि वह "मामूली तौर पर निवासी नहीं" की श्रेणी में आता है या नहीं। इसका मतलब है कि व्यक्ति भले ही "निवासी" हो, लेकिन उसे "मामूली तौर पर निवासी नहीं" के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसे समझने के लिए निम्नलिखित शर्तें देखी जाती हैं:
3. मामूली तौर पर निवासी नहीं की शर्तें:
कोई व्यक्ति "निवासी लेकिन मामूली तौर पर निवासी नहीं" तब कहलाता है, जब वह:
1. पिछले 10 वर्षों में से 9 वर्षों के लिए भारत में "निवासी" न रहा हो; या
2. पिछले 7 वर्षों के दौरान 729 दिनों से कम समय के लिए भारत में उपस्थित रहा हो।
यदि व्यक्ति इन दोनों शर्तों में से कोई एक शर्त पूरी करता है, तो उसे "निवासी लेकिन मामूली तौर पर निवासी नहीं" की श्रेणी में रखा जाता है।
4. कराधान का प्रभाव:
मामूली तौर पर निवासी नहीं व्यक्ति को भारत में केवल उन्हीं आयों पर कर देना होगा, जो भारत में उत्पन्न होती हैं या भारत में अर्जित होती हैं। अंतर्राष्ट्रीय आय (जो भारत के बाहर अर्जित होती है) पर उसे कर नहीं देना होता।
इसका मुख्य लाभ यह है कि भारतीय निवासी होते हुए भी विदेशी आय पर कराधान से बचाव किया जा सकता है, जब तक कि वह भारत में प्राप्त न हो या भारत से संबंधित न हो।
5. उदाहरण:
यदि कोई भारतीय मूल का व्यक्ति विदेश में काम करता है और वर्ष के अधिकांश समय विदेश में बिताता है, लेकिन भारत में कुछ समय के लिए आता है और 182 दिन की उपस्थिति की शर्त पूरी करता है, तो उसे "निवासी" माना जाएगा। लेकिन यदि वह पिछले 10 वर्षों में से 9 वर्षों में भारत का निवासी नहीं रहा हो, तो उसे "मामूली तौर पर निवासी नहीं" माना जाएगा। ऐसी स्थिति में उसकी विदेशी आय पर भारत में कर नहीं लगेगा।
निष्कर्ष:
"निवासी लेकिन मामूली तौर पर निवासी नहीं" की प्रक्रिया आयकर अधिनियम में उन व्यक्तियों के लिए एक विशेष स्थिति है, जो नियमित रूप से भारत में नहीं रहते हैं, लेकिन एक वित्तीय वर्ष में भारत में अधिक समय बिता सकते हैं। इसका लाभ यह है कि ऐसे व्यक्तियों को अपनी विदेशी आय पर भारत में कर का भुगतान नहीं करना पड़ता।
7.
दिखावटी लेनदेन के माध्यम से कर से कैसे बचा जाता है?
दिखावटी लेनदेन (Sham Transactions) का उपयोग कर बचाव (Tax Evasion) के लिए किया जाता है। यह वह लेनदेन होते हैं जो केवल कागजी या कानूनी रूप से किए जाते हैं, लेकिन इनका वास्तविकता में कोई आर्थिक या व्यावसायिक उद्देश्य नहीं होता। ऐसे लेनदेन का एकमात्र उद्देश्य कर से बचाव करना होता है। कर बचाव के लिए दिखावटी लेनदेन के उपयोग को गैरकानूनी माना जाता है और यदि इसका पता चल जाता है तो गंभीर कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
दिखावटी लेनदेन के माध्यम से कर बचाव की प्रक्रिया:
1. नकली लेनदेन (Fake Transactions):
लोग कागजों पर लेनदेन को दिखाते हैं जो वास्तव में हुआ ही नहीं है। यह दिखाया जाता है कि किसी संपत्ति या सेवा का आदान-प्रदान हुआ है, लेकिन असल में कुछ भी नहीं हुआ। इसका उद्देश्य कर योग्य आय को कम दिखाना होता है।
2. बेनामी संपत्ति (Benami Transactions):
बेनामी लेनदेन में व्यक्ति अपनी संपत्ति या धन किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर रखता है। इस तरह से संपत्ति का वास्तविक स्वामी कर से बच सकता है क्योंकि वह आय को अपने नाम पर नहीं दिखाता है।
3. फर्जी व्यय (False Expenses):
फर्जी खर्चे दिखाकर कर बचाने की कोशिश की जाती है। लोग अपने खाते में ऐसे खर्चों को दर्ज कर लेते हैं जो असल में हुए ही नहीं होते, ताकि आय को कम दिखाया जा सके और उस पर कम कर लगे।
4. संपत्ति का कृत्रिम हस्तांतरण (Artificial Transfer of Assets):
व्यक्ति अपनी संपत्ति को कम कर वाले क्षेत्रों या अन्य लोगों के नाम पर कृत्रिम रूप से स्थानांतरित करता है, ताकि कर से बचा जा सके। इसका उद्देश्य आय को कम कर के दायरे से बाहर निकालना होता है।
5. हानिप्रद कंपनियों का उपयोग (Use of Loss-Making Companies):
करदाताओं द्वारा ऐसी कंपनियों में निवेश किया जाता है, जो नुकसान में हैं, ताकि उनका लाभांश या आय कम दिखाया जा सके। यह लेनदेन केवल कर बचाव के लिए होते हैं और इनमें वास्तविक व्यावसायिक लाभ का कोई उद्देश्य नहीं होता।
6. आय का पुनर्वर्गीकरण (Reclassification of Income):
आय को कम कर योग्य स्रोत में बदलने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए, लाभांश आय को ब्याज या ऋण के रूप में दिखाना, ताकि उस पर कम कर लगे।
7. फर्जी ऋण (Bogus Loans):
व्यक्ति कागजों पर बड़े ऋण दिखाकर कर बचाने की कोशिश करता है। इससे वह अपनी कर योग्य आय को कम कर सकता है क्योंकि ऋण को आय के रूप में नहीं दिखाया जाता।
8. ट्रस्टों और फाउंडेशन का दुरुपयोग (Misuse of Trusts and Foundations):
व्यक्ति अपनी आय या संपत्ति को ट्रस्ट या फाउंडेशन में डालकर उस पर कर बचाने की कोशिश करता है। इसका उद्देश्य संपत्ति को अपने व्यक्तिगत नाम से हटाकर कर से बचाव करना होता है।
दिखावटी लेनदेन से कर बचाव के कानूनी परिणाम:
1. कर दंड (Tax Penalties):
यदि कर विभाग को दिखावटी लेनदेन का पता चलता है, तो उस पर भारी दंड और ब्याज लगाया जा सकता है। व्यक्ति को कर के साथ-साथ अतिरिक्त जुर्माने का भी भुगतान करना पड़ सकता है।
2. कानूनी कार्रवाई (Legal Action):
दिखावटी लेनदेन को आयकर कानून के तहत धोखाधड़ी माना जाता है, और इसके खिलाफ गंभीर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें गिरफ्तारी या संपत्ति की जब्ती भी शामिल हो सकती है।
3. संपत्ति की जब्ती (Seizure of Assets):
यदि बेनामी संपत्ति या फर्जी लेनदेन पाए जाते हैं, तो सरकार उन संपत्तियों को जब्त कर सकती है।
निष्कर्ष:
दिखावटी लेनदेन का उपयोग कर बचाने के लिए अवैध होता है और इसका उद्देश्य केवल कागजी तौर पर आय या संपत्ति को छिपाना होता है। यह कर कानूनों के विरुद्ध होता है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए, कर नियोजन और कर बचाव के लिए कानूनी तरीकों का ही उपयोग करना चाहिए और दिखावटी लेनदेन से बचना चाहिए।
8.
मकान संपत्ति से आय की गणना में वार्षिक मूल्य को परिभाषित करें और उन कटौतियों का उल्लेख करें जो वार्षिक मूल्य से स्वीकार्य है।
मकान संपत्ति से आय की गणना में "वार्षिक मूल्य" (Annual Value) उस राशि को संदर्भित करता है, जिसे एक संपत्ति से किराए के रूप में कमाया जा सकता है या संपत्ति के स्वामी द्वारा उस संपत्ति का स्व-उपयोग न किए जाने पर संभावित रूप से कमाई जा सकती है। इसे भारत के आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 23 के तहत परिभाषित किया गया है।
वार्षिक मूल्य की परिभाषा:
1. वास्तविक किराया (Actual Rent Received):
यदि संपत्ति किराए पर दी गई है, तो उससे प्राप्त वास्तविक किराया "वार्षिक मूल्य" का आधार बनता है।
2. संभावित किराया (Fair Rental Value):
यदि संपत्ति किराए पर नहीं है, तो उस संपत्ति से मिलने वाला संभावित किराया, जिसे समान प्रकार की संपत्तियाँ उसी क्षेत्र में कमा सकती हैं, को वार्षिक मूल्य माना जाता है।
3. मानक किराया (Standard Rent):
यदि संपत्ति किसी किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत आती है, तो मानक किराया वह अधिकतम किराया है जिसे उस अधिनियम के तहत स्वीकृत किया जाता है। इसे वार्षिक मूल्य का आधार माना जाएगा, भले ही वास्तविक किराया इससे अधिक हो।
4. स्व-उपयोग वाली संपत्ति (Self-Occupied Property):
स्व-उपयोग वाली संपत्ति के लिए वार्षिक मूल्य "शून्य" माना जाता है, अर्थात स्व-उपयोग की गई संपत्ति से कोई आय नहीं मानी जाती है।
वार्षिक मूल्य की गणना:
वार्षिक मूल्य की गणना करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है:
उच्चतम मूल्य: वार्षिक मूल्य के लिए संभावित किराया, वास्तविक किराया, और मानक किराया का तुलना की जाती है, और इनमें से जो कम है, उसे वार्षिक मूल्य माना जाता है।
वार्षिक मूल्य से स्वीकार्य कटौतियाँ:
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 24 के तहत, वार्षिक मूल्य से निम्नलिखित कटौतियाँ स्वीकार्य हैं:
1. 30% की मानक कटौती (Standard Deduction):
वार्षिक मूल्य से 30% की मानक कटौती की जाती है। यह कटौती किसी भी प्रकार के खर्चों के आधार पर नहीं होती, बल्कि यह एक निश्चित कटौती होती है जो किसी भी प्रकार के मरम्मत, रखरखाव, और अन्य खर्चों को ध्यान में रखते हुए दी जाती है।
उदाहरण: यदि वार्षिक मूल्य ₹1,00,000 है, तो 30% की कटौती ₹30,000 होगी, और शेष ₹70,000 पर कर लगाया जाएगा।
2. गृह ऋण पर ब्याज की कटौती (Deduction for Interest on Home Loan):
यदि मकान संपत्ति को खरीदने, निर्माण करने, मरम्मत करने या पुनर्निर्माण करने के लिए ऋण लिया गया है, तो उस ऋण पर चुकाए गए ब्याज की कटौती की जा सकती है।
स्व-उपयोग वाली संपत्ति (Self-Occupied Property): ब्याज की अधिकतम सीमा ₹2,00,000 प्रति वर्ष है, यदि ऋण 1 अप्रैल, 1999 के बाद लिया गया है।
किराए पर दी गई संपत्ति (Let-Out Property): मकान को किराए पर देने की स्थिति में, ब्याज की कोई सीमा नहीं होती है, अर्थात पूरा ब्याज कटौती के लिए पात्र होता है, लेकिन एक विशेष संशोधन के बाद कुल कटौती ₹2,00,000 तक सीमित कर दी गई है।
3. पूर्व भुगतान की गई ब्याज की कटौती (Pre-construction Interest Deduction):
यदि संपत्ति का निर्माण ऋण के जरिए किया गया है और ब्याज का भुगतान निर्माण पूरा होने से पहले किया गया है, तो उस पूर्व भुगतान की गई ब्याज की राशि को अगले 5 वर्षों में समान किश्तों में काटा जा सकता है।
निष्कर्ष:
मकान संपत्ति से आय की गणना करते समय, वार्षिक मूल्य का निर्धारण किराया, संभावित किराया, और मानक किराया के आधार पर किया जाता है। आयकर अधिनियम, 1961 के तहत वार्षिक मूल्य से मानक कटौती (30%) और गृह ऋण पर ब्याज की कटौती जैसी कटौतियाँ दी जाती हैं, जो कर देयता को कम करने में मदद करती
9.
धारा 40 (b) के अंतर्गत फर्म की व्यापार एवं पेशे से आय की गणना में कौन सी मदे कटौती हेतु अमान्य है?
धारा 40(b) आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत साझेदारी फर्म की व्यापार या पेशे से होने वाली आय की गणना में कुछ विशेष प्रकार के भुगतान की कटौती को अमान्य माना जाता है। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि फर्म साझेदारों को किए गए असंगत या अनुचित भुगतान की कटौती का लाभ न उठा सके।
साझेदारों को वेतन, बोनस, कमीशन, या अन्य पारिश्रमिक के रूप में किए गए भुगतान की कटौती तभी मान्य होगी जब यह साझेदारी अनुबंध में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट हो। यदि अनुबंध में इसका उल्लेख नहीं है, तो इस तरह के भुगतान की कटौती अमान्य होगी। इसके अलावा, अनुबंध में निर्दिष्ट राशि से अधिक भुगतान करने पर भी कटौती नहीं मिलेगी।
साथ ही, साझेदारों को दिए गए ब्याज की कटौती पर भी प्रतिबंध है। ब्याज का भुगतान तभी कटौती के योग्य होगा जब इसकी दर 12% प्रति वर्ष से अधिक न हो। यदि ब्याज दर 12% से अधिक है, तो अधिक दर से किए गए भुगतान की कटौती अमान्य होगी।
इस प्रकार, धारा 40(b) यह सुनिश्चित करती है कि फर्म द्वारा साझेदारों को किए गए भुगतान उचित और नियमानुसार हों, ताकि इनका दुरुपयोग कर आय में कटौती न की जा सके।
10.
आयकर रिटर्न दाखिल करने में देरी के परिणामों को संक्षेप में बताएं।
आयकर रिटर्न दाखिल करने में देरी के निम्नलिखित प्रमुख परिणाम होते हैं:
1. विलंब शुल्क: आयकर अधिनियम की धारा 234F के तहत, विलंब से रिटर्न दाखिल करने पर ₹1,000 से ₹5,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि आय ₹5 लाख से कम है, तो अधिकतम जुर्माना ₹1,000 है।
2. ब्याज का भुगतान: यदि करदाता पर कोई बकाया कर है, तो धारा 234A के तहत ब्याज (1% प्रति माह) भी देना पड़ता है।
3. धारा 80 के तहत कटौती का नुकसान: देरी से दाखिल किए गए रिटर्न पर धारा 80C, 80D आदि के तहत मिलने वाली कटौती का लाभ नहीं मिलेगा।
4. लॉस कैरी फॉरवर्ड का नुकसान: यदि करदाता को किसी वित्तीय वर्ष में नुकसान होता है, तो उसे अगले वर्षों में ले जाने और समायोजित करने की अनुमति नहीं होगी।
5. धारा 139(9) के तहत नोटिस: आयकर विभाग रिटर्न में त्रुटियों के लिए नोटिस भेज सकता है, जिससे परेशानी बढ़ सकती है।
6. रिफंड में देरी: यदि देरी से रिटर्न दाखिल किया जाता है, तो रिफंड प्राप्त करने में भी देरी हो सकती है।
11.
गत वर्ष की आय पर कर निर्धारण में कर लगाया जाता है"। व्याख्या करें।
"गत वर्ष की आय पर कर निर्धारण में कर लगाया जाता है" का अर्थ है कि आयकर का आकलन पिछले वित्तीय वर्ष (जिसे "आय वर्ष" कहा जाता है) की आय के आधार पर किया जाता है, लेकिन कर का भुगतान और कर रिटर्न दाखिल वर्तमान वर्ष (जिसे "निर्धारण वर्ष" कहा जाता है) में किया जाता है।
इसे समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं:
1. आय वर्ष (Previous Year):
आय वर्ष वह वर्ष होता है जिसमें व्यक्ति ने आय अर्जित की है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक आय अर्जित कर रहा है, तो यह अवधि 2022-23 का आय वर्ष कहलाएगी।
2. निर्धारण वर्ष (Assessment Year):
निर्धारण वर्ष वह वर्ष होता है जिसमें पिछले वर्ष की आय पर कर का आकलन किया जाता है और कर जमा किया जाता है।
उदाहरण के लिए, आय वर्ष 2022-23 के लिए निर्धारण वर्ष 2023-24 होगा। इसका मतलब है कि 2022-23 में अर्जित आय पर कर का भुगतान और रिटर्न दाखिल 2023-24 में किया जाएगा।
3. गत वर्ष की आय पर कर क्यों लगाया जाता है:
किसी भी करदाता की आय का सटीक आकलन तभी किया जा सकता है जब वह वर्ष पूरा हो चुका हो और उसकी कुल आय और खर्चों की जानकारी उपलब्ध हो।
इसीलिए, आय वर्ष समाप्त होने के बाद ही कर का आकलन किया जाता है, और निर्धारण वर्ष में करदाता से कर वसूला जाता है।
4. उदाहरण:
यदि एक व्यक्ति ने अप्रैल 2022 से मार्च 2023 (आय वर्ष 2022-23) में 5 लाख रुपये की आय अर्जित की, तो उसका कर निर्धारण 2023-24 (अप्रैल 2023 से मार्च 2024) में किया जाएगा।
इस प्रक्रिया के तहत व्यक्ति को 2023-24 में अपनी 2022-23 की आय का कर भरना होगा और उसी पर टैक्स रिटर्न दाखिल करना होगा।
निष्कर्ष:
यह प्रणाली इसलिए बनाई गई है ताकि सरकार के पास आय और कर का सटीक हिसाब हो, और करदाता को अपनी आय का आकलन करने के लिए पर्याप्त समय मिले।
12.मकान किराया भत्ते की गणना के लिए क्या प्रावधान है?
मकान किराया भत्ता (House Rent Allowance - HRA) आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर-रहित (tax-exempt) हो सकता है यदि कोई व्यक्ति किराए के मकान में रह रहा है। HRA की गणना के लिए कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान हैं, जो निम्नलिखित हैं:
1. HRA पर कर छूट का प्रावधान:
आयकर अधिनियम की धारा 10(13A) के अंतर्गत, किसी कर्मचारी को मिलने वाले मकान किराया भत्ता पर कर छूट मिल सकती है। यह छूट निम्नलिखित तीन मानदंडों के आधार पर न्यूनतम राशि के रूप में दी जाती है:
वास्तविक HRA प्राप्त किया गया (Actual HRA received): जो राशि कर्मचारी को नियोक्ता से HRA के रूप में मिलती है।
वेतन का 50% या 40%: कर्मचारी के वेतन का 50% (यदि वह मेट्रो शहर - दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, या चेन्नई में रहता है) या 40% (अन्य शहरों के लिए)।
किराए में वेतन का 10% घटा कर शेष राशि: किराए में से वेतन का 10% घटाने के बाद शेष राशि।
2. HRA छूट का गणना फार्मूला:
HRA छूट की गणना के लिए, ऊपर दिए गए तीनों मानदंडों में से जो राशि सबसे कम होती है, वही HRA पर कर-मुक्त राशि के रूप में मानी जाएगी।
3. वेतन की परिभाषा:
यहां वेतन का अर्थ है: बेसिक सैलरी + महंगाई भत्ता (DA) (यदि यह वेतन का हिस्सा हो) + कमीशन (यदि यह बिक्री पर आधारित है)। HRA छूट की गणना में अन्य भत्तों को शामिल नहीं किया जाता है।
4. उदाहरण:
मान लीजिए एक व्यक्ति मेट्रो सिटी में रहता है और उसकी निम्नलिखित आय है:
बेसिक सैलरी: 30,000 रुपये प्रति माह
महंगाई भत्ता (DA): 5,000 रुपये प्रति माह
HRA प्राप्त: 12,000 रुपये प्रति माह
किराया: 15,000 रुपये प्रति माह
HRA छूट की गणना:
1. वास्तविक HRA: 12,000 रुपये प्रति माह (1,44,000 रुपये प्रति वर्ष)
2. वेतन का 50%: (30,000 + 5,000) का 50% = 17,500 रुपये प्रति माह (2,10,000 रुपये प्रति वर्ष)
3. किराए में से वेतन का 10% घटाने के बाद: 15,000 - 3,500 (35,000 का 10%) = 11,500 रुपये प्रति माह (1,38,000 रुपये प्रति वर्ष)
न्यूनतम राशि: इन तीनों में सबसे कम राशि 1,38,000 रुपये है, इसलिए HRA छूट के रूप में 1,38,000 रुपये कर मुक्त होंगे।
5. महत्वपूर्ण बिंदु:
यदि व्यक्ति अपने स्वयं के मकान में रह रहा है, तो उसे HRA पर कोई छूट नहीं मिलती है।
HRA छूट का दावा करने के लिए, कर्मचारी को मकान मालिक का किराया रसीद प्रस्तुत करनी होती है।
यदि वार्षिक किराया 1 लाख रुपये से अधिक है, तो मकान मालिक का पैन नंबर देना आवश्यक होता है।
निष्कर्ष:
मकान किराया भत्ता (HRA) कर छूट का एक लाभदायक साधन है, जो उन व्यक्तियों के लिए है जो किराए के मकान में रहते हैं। HRA की गणना उपरोक्त तीन मानदंडों के आधार पर की जाती है और इसका उद्देश्य करदाताओं को किराए के खर्चों पर राहत देना है।
13.
किन्हीं पाँच व्यावसायिक हानियों का उल्लेख करें जो व्यावसायिक आय से कटीती योग्य नहीं हैं।
यहाँ पाँच ऐसी व्यावसायिक हानियाँ दी गई हैं जो व्यावसायिक आय से कटौती योग्य नहीं हैं:
1. आयकर या व्यक्तिगत कर: आयकर अधिनियम के तहत, किसी व्यवसाय द्वारा दिया गया आयकर, अधिभार, या जुर्माना जैसे व्यक्तिगत कर किसी व्यवसायिक आय में कटौती योग्य नहीं होते हैं।
2. व्यक्तिगत खर्च: व्यवसाय के मालिक या प्रबंधकों के व्यक्तिगत खर्च जैसे यात्रा, मनोरंजन, या निजी उपयोग की वस्तुओं पर किया गया खर्च व्यवसाय से संबंधित नहीं माना जाता और इसलिए कटौती योग्य नहीं होता है।
3. गैर-कानूनी भुगतान: रिश्वत, अवैध भुगतान, और भ्रष्टाचार से संबंधित व्यय को भी कटौती योग्य नहीं माना जाता है। इन खर्चों को व्यवसाय के लिए उचित नहीं माना जाता है और आयकर अधिनियम के तहत इन पर छूट नहीं मिलती।
4. पूंजीगत हानि: यदि किसी संपत्ति की बिक्री या व्यवसाय के स्थायी पूंजीगत ढांचे में किसी प्रकार की हानि होती है, तो उसे व्यवसायिक आय से कटौती योग्य नहीं माना जाता है। पूंजीगत हानियाँ दीर्घकालिक निवेश से संबंधित होती हैं और सामान्यतः आयकर में कटौती योग्य नहीं होती हैं।
5. संभावित देनदारी पर प्रोविजन: अगर कोई व्यवसाय भविष्य में संभावित देनदारी के लिए प्रोविजन बनाता है, जैसे कि संभावित हानि या विवादित देनदारियां, तो इसे व्यावसायिक आय से कटौती योग्य नहीं माना जाता। यह वास्तविक हानि नहीं होती बल्कि एक अनुमानित खर्च होता है।
इन पाँच हानियों को व्यावसायिक आय से कटौती के लिए मान्य नहीं माना जाता क्योंकि ये या तो व्यक्तिगत होती हैं, अवैध होती हैं, या फिर व्यवसाय के सामान्य खर्चों में नहीं आतीं।
14.
किस परिस्थिति में एक व्यक्ति की आय दूसरे व्यक्ति की आय मानी जाती है?
कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में एक व्यक्ति की आय को दूसरे व्यक्ति की आय माना जाता है। भारत में आयकर अधिनियम, 1961 के तहत ऐसी स्थितियाँ निर्धारित की गई हैं, जिन्हें क्लबिंग प्रावधान कहा जाता है। इसके तहत, किसी व्यक्ति की आय को दूसरे व्यक्ति की आय में शामिल किया जा सकता है, जब:
1. पति-पत्नी के बीच उपहार या संपत्ति हस्तांतरण:
यदि एक व्यक्ति ने अपने पति/पत्नी को बिना किसी उचित प्रतिफल के संपत्ति या उपहार दिया है और उस संपत्ति से आय अर्जित होती है, तो यह आय देने वाले व्यक्ति की मानी जाएगी।
उदाहरण: यदि पति अपनी पत्नी को मकान उपहार स्वरूप देता है और पत्नी उस मकान को किराए पर देती है, तो इस किराए की आय पति की आय मानी जाएगी।
2. नाबालिग बच्चे की आय:
नाबालिग बच्चों (18 वर्ष से कम उम्र) द्वारा अर्जित आय को माता-पिता की आय में शामिल किया जाता है।
यह आय उस माता-पिता की मानी जाती है जिसकी आय अधिक होती है।
अपवाद: यदि बच्चा विकलांग है, तो उसकी आय क्लबिंग में नहीं आती है।
3. बेटे की पत्नी या बहू को संपत्ति का हस्तांतरण:
यदि कोई व्यक्ति अपनी बहू (बेटे की पत्नी) को बिना किसी प्रतिफल के संपत्ति हस्तांतरित करता है, और उस संपत्ति से आय होती है, तो इसे हस्तांतरित करने वाले व्यक्ति की आय मानी जाएगी।
4. किसी एसोसिएशन या व्यापार में पति-पत्नी के बीच निवेश से आय:
यदि पति या पत्नी एक दूसरे के व्यवसाय या फर्म में बिना किसी उचित प्रतिफल के निवेश करते हैं, तो इससे अर्जित लाभ या आय को निवेश करने वाले की बजाय दूसरे व्यक्ति की आय माना जा सकता है।
5. धोखे या कर से बचने के लिए संपत्ति का हस्तांतरण:
यदि कोई व्यक्ति कर बचाने के उद्देश्य से अपनी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर हस्तांतरित करता है, लेकिन उस संपत्ति पर उसका वास्तविक नियंत्रण है, तो उस संपत्ति से होने वाली आय को पहले व्यक्ति की आय माना जाएगा।
निष्कर्ष:
इन क्लबिंग प्रावधानों का मुख्य उद्देश्य कर बचाने के लिए संपत्ति या आय को दूसरों के नाम पर हस्तांतरित करने से रोकना है। इन नियमों के तहत, आयकर विभाग सुनिश्चित करता है कि आय का सही तरीके से आकलन हो और टैक्स चोरी न हो सके।
Note:
Ye sabhi answer chat gpt or ai ka use karke likha gya hai
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें